Monday, October 21, 2019

* चौक


🌺🌺साहित्य सिंधु🌺🌺
हमारा साहित्य,हमारी संस्कृति

पद्य रचना:

शीर्षक-'चौक'
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ये कितनी पीढ़ियां देख चुका,
एक पीढ़ी अब भी देख रहा
और कितनी पीढ़ियां देखेगा,
यह ज्ञात ना होने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।

मैं सदा ही सत्य की राह चलूं,
गीता पर रखकर हाथ कहूं
महाभारत छिड़ता रोज यहां,
 षडयंत्र सब ने कर डाला है। 
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।

जरा ठहरो मेरी बात सुनो,
निश्चित ना कोई हालात सुनो 
  कभी जोखिम तो कभी जश्न यहां,
  इस पथ से गुजरने वाला है।
 कई पीढ़ियों का रखवाला है,
 ये चौक बड़ा निराला है।

कभी खट्टी-मीठी बात चले,
शुभ दिन कभी काली रात रहे
सुख-दुख,तृप्ति कभी प्यास यहां,
महादान कभी घोटाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।

 होरी, चैता हर ताल बजे,
हुलसे बसंत हर साल सजे
कभी प्रीत के गीत की गूंज उठे,
 कभी हिंसा होने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।

हमने इसकी सच्चाई को,
अच्छाई और बुराई को
जो झेल गया कह दूं कैसे,
कुछ बात छुपाने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।

किसका सफर कब तक है यहां,
रुक जाए कोई जाने कहां
हिसाब किताब बराबर तो,
ये सबका रखनेवाला है।
 कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।

क‌ई आए कितने चले गए,
कुछ बुरे भी थे कुछ भले गए
ये मंच वही पुराना बस,
किरदार बदलने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
             

                    'शर्मा धर्मेंद्र'