🌺साहित्य सिंधु 🌺
हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति
Our blog
Our blog
पद्य रचना
विधा-कविता
शीर्षक- 'कोरोना'
इस कविता का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं बल्कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के प्रति लोगों को जागरुक करना,सचेत करना,एवं उनका मनोरंजन करना है।
(मगही आंचलिक हास्य कविता)
नाया मेहमान हे,
बाड़ा बदनाम हे।
डरे एकरा सब कोई घर में लुकाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।
दुनिया लाचार हे,
मचल हाहाकार हे।
सुपर पावर देश भी ठेहुना प आएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।
बढई हाली-हाली हे,
रोग बलशाली हे।
धरई थे इ कस के जे तनिको छुआएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।
लाक-डान बढ़ई थे,
कछुआ नियन चलई थे।
सालो भ टूटत ना अइसन बुझाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।
हटे से घट जाएत,
सटे से बढ़ जाएत।
सटही से सउसे जहान छितराएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।
गांव ना शहर गेल,
जे जाहां हल ठहर गेल।
निकलल जे घर से उ कुकुर नियन खदेराएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।
बर-बजार बंद हे,
मिलइत शकरकंद हे।
निमके आउ भात प संतोख बन्हाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।
बड़े-बड़े बाबू साहेब,
अपना के लाट साहेब।
लाक-डाउन तोड़े वाला सोंटा से सोंटाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल सहे।
चानी कोई कटई थे,
चानी कोई बंटई थे।
धरमी-अधरमी अबे चिन्हाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।
सडुआना ना ससुरारी के,
नेवता ना हकारी के।
तिलक,बरात,चउठारी सब भुलाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।
परकीरती के खेल हे,
सिस्टम सब फेल हे
विज्ञान,वेद,गीता,कुरान सब रखाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल से।
सामाजिक दूरी बढ़ई थे ,
मास्क मुंह प चढ़ई थे।
साबुन,सेनेटाइजर खूब हाथ प मलाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।
धीर तनी धरल जाव,
घरवे में रहल जाव।
संकट इ संयम से रहे वाला आयल हे।
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।
धन्यवाद हम करई थी,
गोड़ उनका लगई थी।
कोरोना के जोधा जे सेवा में अझुराएल हे