Friday, November 29, 2019

'बम फटाका सीताराम'


🌺🌺 साहित्य सिंधु 🌺🌺
हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति


बम फटाका सीताराम




बम फटाका सीताराम
बम फटाका सीताराम

पद्य रचना


विधा - कविता

शीर्षक - बम फटाका सीताराम

विशेष आभार व्यक्त करता हूं, मैं अपने परम मित्र श्री अनिल कुमार पाठक जी का जिन्होंने हमारी कविता के भाव के समानांतर अपनी छवि को पाठकों तक पहुंचाने हेतु हमें सहर्ष स्वीकृति प्रदान की।

आशा और विश्वास करता हूं कि पूर्ण रूप से जीवन प्रासंगिक इस मगही हास्य कविता में पाठक अपने आप को  कविता के केंद्र में ढूंढ पाएंगे और यह महसूस कर पाएंगे कि हम  जो जीवन जीते हैं उसके लिए इस कविता की प्रत्येक पंक्तियां कितनी प्रासंगिक है।


🌺 मगही आंचलिक हास्य कविता 🌺
('बम फटाका सीताराम')

1

गांवे-गांवे घूर के,
आएल ही दूर से।
छोट-बड़ सभनी के,
कर‌ई थी परनाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

2

ठीके सामाचार हे,
कुछ कहे के बिचार हे।
 मुंहवां प तनिको ना,
लग‌ई थे लगाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

3

दुनिया में आके,
जनम ‌‌इ पाके।
लगल कि बन गेल,
अब सब काम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

4

जनम तो भरम हल,
लिखल कुछ करम हल।
अ‌इली तो जनली,
कि केतना हे काम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

5

लईका‌ई तो ठीके  से,
बीत गेल नीके से।
खेले आऊ खाए से,
हलक बस काम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


6

चढ़ल जवानी जब,
बढ़ल नदानी तब।
सांझ होवे जहंई,
तह‌ंई बिहान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


7

जहिया सेयान भेली,
छौफुटिया जवान भेली।
अगुवा बराहिल जूटे,
लगलन तमाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

8


अगुआ के भीड़ जुटे,
मनवा में लड्डू फूटे।
एगो के पांच बेरी,
कर‌अ हली सलाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

9


जहिया बियाह भेल,
खूब बाह-बाह भेल।
गते-गते आफत में,
परल परान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


10

नकीया नथा गेल,
ढोलक बनहा गेल।
नेटिया में बजे लगल,
रोज ढम-ढाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


11

घरवा तो बस गेल,
भार-बोझा बढ़ ‌‌‌‌ गेल।
बाल-बाचा घर के अब,
रह‌ई थे ध्यान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

12

जिनगी चलावे ला,
प‌ईसा कमाए ला।
घरवा में होवे लगल,
रोज कोहराम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


13

जब तक जवान हली,
आन्ही-तूफान हली।
झिस-लपट कुछ दिन,
चला देलक काम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

14


संतोषी हम भेली ना,
लेली से देली ना,
कने से लूट लेउं,
इहे हलक धेयान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

15

झिस-लपट बेस लगल,
एक दिना ठेंस लगल।
नानी मरो अब से,
कि करब अईसन काम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


16

पसेना बह‌ईली जब,
देह-तोड़ कम‌ईली जब।
उड़ गेल रूहत देखूं ,
सुख गेल चाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


17

घरवा परिवार ला,
सुखी संसार ला।
दमड़ी ला चमड़ी,
हम क‌ईली निलाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


18

समाज के बात हे,
काहां औकात हे।
प्रतीष्ठा में ज़िन्दगी भर, 
देली परान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

19


क‌ईसहूं निबह गेल,
हाथ खाली रह गेल।
देहिया पर चमड़ी,
ना हथवा में दाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


20

केतनो कमा लेब,
एहिजे गंवा देब।
ई दुनिया-दारी,
सार हेया हराम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

21


जवानी में छुट के,
घीऊ पीली सूत के।
बाड़ा बुढ‌ऊती इ,
कर‌ई थे परेशान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

22

जीते हम तरह जाऊं,
लग‌ई थे कि मर जाऊं।
अटकल हे नेटिये प,
आके परान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


23

जिनगी के धत् तेरी के,
हेरा-फेरी मार तोरी के।
राम भाई हांड़ी,
चूल्हा भाई सलाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

24

चैन से जी लेउं,
राम- रस पी लेउं।
मुंअब तो धन ना,
जाएत शमशान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

25

कह देली खोल के,
जाई थी बोल के।
राम नाम सत्य हे,
जपूं सुबह-शाम। 
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


                                  शर्मा धर्मेंद्र


पाठकों से अनुरोध है कि कोई त्रुटि एवं व्यक्तिगत आपत्ति हो तो हमें अवश्य सूचित करें
धन्यवाद!








Monday, November 25, 2019

'कौन हो तुम'


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पद्य रचना
विधा-कविता
शीर्षक- ' कौन हो तुम '

दिन-रात जी तोड़ कमाता हूं
बच नहीं पाता बहुत बचाता हूं
कुंडली कंगाल कर डाला तूने 
मुझे दिखाना नीचा छोड़ दो
तुम जो भी हो
मेरा पीछा छोड़ दो

ना मेरी पत्नी ना प्रेमिका हो
हद है मगर तुम चीज अजूबा हो
 ये कैसा रिश्ता है
 मुझसे ये रिश्ता तोड़ दो
तुम जो भी हो
मेरा पीछा छोड़ दो

पूछ लो पूछना है जिनसे
तंग हो ग‌ई ज़िन्दगी तुमसे
ना प्यार न मोहब्बत न इश्क
प्यार जताने का ये तरीका छोड़ दो
तुम जो भी हो
मेरा पीछा छोड़ दो

 ना रोटी ना कपड़ा ना मकान
अभाव मुक्त न हो सका ये इंसान
वीरान कर चुकी हो अब
मेरा बगीचा छोड़ दो
 तुम जो भी हो
मेरा पीछा छोड़ दो

                                 'शर्मा धर्मेंद्र'

Sunday, November 24, 2019

'राजगीर की यात्रा'


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' राजगीर की यात्रा'

25 दिसंबर 2018
गद्य रचना
विधा-यात्रा वृतांत
शीर्षक-पांच पड़ाव

जब कभी हम अपने अस्त-व्यस्त,उबाऊ और तनावपूर्ण दिनचर्या के बीच कहीं सैर-सपाटे पिकनिक या यात्रा की बात छेड़ते हैं तो, अचानक ही तन-मन में एक नई स्फूर्ति एवं रोमांच का अनुभव होने लगता है। मानो जैसे जेल से रिहाई की खबर सुन चुका कोई कैदी।ऐसा होगा, वैसा होगा, यह करेंगे, वह करेंगे, ऐसे घूमेंगे, वैसे घूमेंगे, खूब  मस्ती  और  मजा  आएगा आदि नाना प्रकार की रंग-बिरंगी चित्र रेखा खींचते हुए हमारे मन का पंछी कल्पनाओं के पंख फड़फड़ाते हुए इतनी दूर यात्रा पर निकल जाता है कि क्षण भर के लिए हम स्वयं को जैसे भूल ही जाते हैं। यदि यात्रा की तिथि निर्धारित हो गई हो तो मत पूछिए-सफर के प्रारंभ होते-होते तक मेले के इंतजार में अंगुलियों पर एक-एक दिन गिनते अधीर बच्चों की तरह मन में लेश मात्र भी धैर्य नाम की कोई चीज रह ही नहीं जाती और आखिर वह दिन आ ही जाता है जब हम मन में कुलबुलाती मीठी कल्पना को संजोए एक सुखद अनुभव के साथ यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
               
            लगभग एक महीना पूर्व ही विद्यालय प्रबंधन की ओर से शैक्षिक-परिभ्रमण की तारीख 29-12-2018 को बेतला राष्ट्रीय उद्यान के लिए निश्चित की गई थी जो झारखंड राज्य के लातेहार और पलामू जिले के जंगलों में लगभग 1026 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। ब्याघर्आरक्षित इस वन में बाघ, हाथी, तेंदुआ, गौर,सांभर,चितल आदि वन्य जीव इसके आकर्षण का मुख्य केंद्र हैं । खैर...................
अधिक ठंड बढ़ जाने के कारण शैक्षिक परिभ्रमण में फेर-बदल करके विद्यालय प्रबंधन द्वारा राजगीर  जाने का निर्णय लिया गया।
             
           24 दिसंबर 2018 की सुबह जब हमारी आंखें खुली तो एक नई ऊर्जा, एक नई स्फूर्ति एवं उमंग की अनुभूति हो रही थी। तन मन पुलकित हो रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वर्षों से बंद किसी पंछी को हमेशा के लिए आजादी मिलने वाली है मैं तो यही सोच रहा था की जब मैं इतना अधीर हो रहा हूं तो विद्यालय के बच्चों की व्याकुलता कितनी होगी।
               
               रोज की तरह बिस्तर से उठा, नित्य क्रिया से निवृत हुआ, दातुन की, स्नान किया, माथे पर तिलक लगाया और शुभ दिन शुभ यात्रा की कामना करते हुए अपने इष्ट देव भगवान शंकर की प्रतिमा के समक्ष अपना सिर झुकाया। फटाफट कुछ जलपान करके विद्यालय का रूख किया।
               
                  रोज की तुलना में अपने दोपहिया वाहन को आज मैंने कुछ तेज ही दौड़ाया और 8 बजे विद्यालय पहुंचा। हर दिन विद्यालय के प्रवेश द्वार पर अरविंद सर मिलते, आज भी मिले, गुड मॉर्निंग कहा और मैं विद्यालय में प्रवेश कर गया। और दिनों की तुलना में आज कुछ विशेष चहल-पहल थी विद्यालय में। लेकिन ये क्या कुछ पल के लिए हमारा ध्यान अरविंद सर के चेहरे पर वापस चला गया। मुझे ध्यान आया कि उनके मुख मंडल पर खेद और हर्ष के मिश्रित भाव थे। खेद शायद इसलिए कि कुबेर महाराज के खजाने में आज सेंध लगने वाली है और हर्ष इसलिए कि इस यात्रा के बहाने उन्हें भी घूमने का मौका मिलेगा। पर हमें इन बातों से क्या लेना-देना हमें यात्रा पर जाना है तो जाना है। पर मन में एक डर भी था अभी कुछ नहीं कहा जा सकता भाई बेतला राष्ट्रीय उद्यान  की यात्रा कटी तो राजगीर की तरफ मुड़ी ,हो सकता है राजगीर की यात्रा शाम तक  मध्यम होते सूरज की रोशनी की तरह अंधकार में विलीन हो जाए।

                 आगे बढ़ा,विद्यालय के निर्देशक महोदय मिले उन्हें भी गुड मॉर्निंग कहकर आगे बढ़ा । आज उनके चेहरे पर उत्तरदायित्व की भावना प्रबल थी क्योंकि यात्रा के लिए चयनित 60 छात्र-छात्राएं और लगभग 25 शिक्षक शिक्षिकाओं व अन्य सहयोगीयों के साथ सुरक्षित शैक्षिक परिभ्रमण करना और वापस लौटना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी।

                विद्यालय के छात्रों,सहयोगी शिक्षक शिक्षिकाओं और सेविकाओं से सुबह का नमस्कार करते हुए स्टाफ रूम तक पहुंचा। बाहर निकला तो मैंने पाया कि विद्यालय के संपूर्ण प्रांगण में  आज यात्रा की लहर दौड़ रही है नजारा ही कुछ और था। शिक्षक एवं बच्चों में झुंड के झुंड यात्रा  की निजी नीतियां और तैयारियां हो रही थीं। मैं भी शिक्षक के एक झुंड में दखल देते हुए घुसा और विलीन हो गया।
                 
                 विद्यालय द्वारा सूचना दी गई कि विद्यालय आज भी निश्चित समय तक चलेगी शिक्षक और छात्र अपने-अपने घर जाकर पुनः संध्या 4:00 बजे विद्यालय में उपस्थित होंगे और यात्रा संध्या 5:00 बजे प्रारंभ होगी


                समयानुसार विद्यालय की छुट्टी हुई ।
छात्र व शिक्षक घर जाकर यात्रा के साजो- सामान के साथ वापस 4:00 बजे विद्यालय में उपस्थित हो गए ।  सभी के हाथों और कंधों पर छोटे-बड़े बैग थे। जाड़े का मौसम था।  सब ने बैग में जरूरी सामान बांध रखा था।  छात्र-छात्राओं को पहचानना मुश्किल हो रहा था क्योंकि हम उन्हें रोज यूनिफॉर्म में देखते मगर आज पूरी आजादी थी सबने अपने-अपने पसंद के रंग-बिरंगे नए कपड़े पहन रखे थे। विद्यालय के बरामदे से पूड़ी सब्जी की स्वादिष्ट खुशबू आ रही थी। पूड़ी और सब्जी हम सभी के रात का भोजन था। जो विद्यालय में ही तैयार करवाया जा रहा था। धीरे धीरे अस्ताचलगामी सूरज की रोशनी  धीमी हुई  और  यात्रा की तैयारियां पूरी

          दिन सोमवार 24 दिसंबर 2019 था। यात्रा वाहन में थीं, विद्यालय की चार छोटी गाड़ियां और एक बस । इनके सभी चालकों ने आज बड़ी फुर्सत में सभी गाड़ियों को  को धो पोंछकर चमकाया था और स्वयं भी ऐसे तैयार हुए जैसे किसी की बारात। प्रधानाचार्य और निदेशक महोदय के आदेशानुसार छात्र-छात्राओं  व सभी शिक्षक शिक्षिकाओं को यथावत स्थान मिला और कुछ न कुछ जिम्मेदारियां भी ।   Dreamland Public School का यह पहला शैक्षिक परिभ्रमण था ।संध्या 5 बज कर 36 मिनट पर विद्यालय के सभी छोटी-बड़ी पांच 5 गाड़ियां एक-एक करके राजगीर के लिए रवाना हो गई। मैं जिस छोटी गाड़ी में बैठा उसमें हमसफर बने हमारे सहयोगी शिक्षक राघवेंद्र सर । अच्छा लगा क्योंकि समानांतर सोच वालों के बीच जमती भी अच्छी है और टिकती भी अच्छी है । हमारे साथ थे वाहन चालक लवलेश कुमार और कुछ छात्र। हमारे विद्यालय से लगभग 15 सौ मीटर की दूरी मां देवी का मंदिर आया शुभ यात्रा की कामना की और 1 दिन के लिए विद्यालय के उलझन से  दूर हमने चैन की सांस ली।

                  गुनगुनाते ,इधर-उधर यहां-वहां की बातें करते हुए हमारा पहला पड़ाव आया दिल्ली से कोलकाता जाने वाली नेशनल हाईवे के पास बबलू होटल जो हमारे विद्यालय से 25 से 30 किलोमीटर उत्तर में था। 6:30 में हमारी गाड़ी रुकी, हमारे पीछे की सभी गाड़ियां एक साथ हो गई और हम सभी गाड़ियों के साथ पुन:6:40 बजे प्रस्थान कर ग‌ए।
                
                    हम थे राष्ट्रीय राजमार्ग nh2 पर प्रतिस्पर्धा स्वरूप सभी गाड़ियां फर्राटा भरती दौड़ी जा रही थीं।

                                आगे के लिए इंतजार करें!     

Thursday, November 14, 2019

'कोयल'


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    बाल कविता
    शीर्षक- 'कोयल'

कभी-कभी क्यों आती कोयल,
सबके मन को भाती कोयल।
डाल-डाल पर फुदक-फुदक कर,
मीठे सुर में गाती कोयल।

रोज सवेरे आती हो तुम,
मीठे गीत सुनाती हो तुम।
मीठे-मीठे गीत सुना कर,
सबका मन हर्षाती कोयल।

कभी तो मेरे आंगन आओ,
मुन्ना-मुन्नी को बहलाओ।
दौड़ लगाते तेरे पीछे,
इतना क्यों सताती कोयल।

मृदुल कंठ कहां से पाया,
जो सारे जग को है भाया।
आमों के मौसम में आकर,
फिर कहां उड़ जाती कोयल।
              
                                  ' शर्मा धर्मेंद्र '


Thursday, November 07, 2019

'मैं हूं गंगा'


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 पद्य रचना:

 शीर्षक-'मैं हूं गंगा'

पहले जो बहती थी मैं'
अमृत की बूंद थी मैं।
पावन थी मेरी धारा'
भागीरथ ने था उतारा।
आज हाल उसका लेश भी,
मलाल ना रखूंगी।
मैं हूं गंगा मैं बहूंगी, मैं हूं गंगा में बहूंगी।
   
स्वर्ग लोक छोड़ आई,
शिव की जटा में समाई।
निकली थी लघु धार में,
पितरों के मैं उद्धार में।
वरदान रूप आके,
अभिशाप ले चलूंगी।
मैं हूं गंगा मैं बहूंगी, मैं हूं गंगा में बहूंगी।

मेरे जल में तुम उतरकर,
पवित्र धारा से गुजरकर।
मन के पाप को धो करके,
धन्य जीवन को करके।
तट को छोड़ भी  जाओ,
मन की व्यथा ना कहूंगी।
मैं हूं गंगा मैं बहूंगी, मैं हूं गंगा में बहूंगी।

संस्कार पर्व वाहिनी,
मैं पाप सर्व नाशिनी।
श्रद्धा हूं आस्था हूं मैं,
मुक्ति का रास्ता हूं मैं। 
पथ मुक्ति का प्रकाशित,
सदियों तक मैं रखूंगी।
मैं हूं गंगा मैं बहूंगी, मैं हूं गंगा में बहूंगी।

देख दुर्दशा  हमारी,
वंचित न दुनिया सारी। 
अपशिष्ट मुझमें डालो,
या विष भी कर डालो।
जहर पीके भी तुम्हारा,
सदा मुक बनी रहूंगी।
मैं हूं गंगा मैं बहूंगी, मैं हूं गंगा में बहूंगी।

संभव समय हो आगे,
जब भाग्य मेरा जागे।
कर जाए इतना निर्मल,
पहले थी जितना निर्मल।
उद्धार अपना वक्त के ही,
हाथों मैं करूंगी।
मैं हूं गंगा मैं बहूंगी, मैं हूं गंगा में बहूंगी।




                          'शर्मा धर्मेंद्र'


Monday, November 04, 2019

'मेरी मां'


🌺🌺 साहित्य सिंधु🌺🌺
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बाल कविता
शीर्षक-'मेरी मां'

भोली-भाली मेरी मां,
प्यारी-प्यारी मेरी मां
दूध-मलाई मुझको देती,
 जग में न्यारी मेरी मां।

कान पकड़कर मुझे सिखाती,
उठ बैठ भी कभी कराती
भले-बुरे का भेद बताकर,
ज्ञान दिलाती मेरी मां।
        
                      'शर्मा धर्मेंद्र ''