🌺साहित्य सिंधु 🌺
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साहित्य सिंधु की कलम से.....
पद्य रचना
विधा-कविता
शीर्षक-पढे़गा कौन..?
स्याही खत्म हुई मेरे कलम की,
अब भरेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
लोग सब हैं समय के अभाव में,
बेचैन,व्यस्त सब जी रहे तनाव में।
विश्राम शब्दों की छांव में करेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
आओ एक नई बात बताऊंगा,
मैं तुम्हें जिंदगी के पाठ पढ़ाऊंगा।
मेरी पुस्तक का पाठक बनेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
तुम सोचते हो मैं ही दुखी हूं,
पढ़ कर देख मैं भी दुखी हूं।
विपत्तियों के साथ भी खड़ा रहेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
मैं लिखता रहूं और कोई ना पढे़,
फिर लेखन की गाड़ी आगे कैसे बढ़े?
मेरे विचारों की सवारी करेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
पन्ने उलट-पुलट के रह जाते हो,
अब कौन पढ़ें,ये सोच के रह जाते हो।
अनंत ज्ञान की हिफाजत करेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं
मगर पढ़ेगा कौन..?
विष को अमृत कर दूं,
मृत को जीवित कर दूं।
मेरे भावों का रसपान करेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
इंसान,इंसान बने कैसे?
मानव महान बने कैसे?
मेरी अभिव्यक्ति को व्यक्ति समझेगा कोन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
उत्तम चरित्र, व्यक्तित्व हो जाए,
जीवन सबका साहित्य हो जाए।
पवित्र पथ पर पांव आखिर धरेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
'शर्मा धर्मेंद्र'