🌺🌺 साहित्य सिंधु 🌺🌺
हमारा साहित्य,हमारी संस्कृति
शीर्षक-'सात समंदर पार'
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ना धूल हटा मेरे पथ का,निशान बनाना है,
मेरे कदमों को सात समंदर पार जाना है।
दौड़-धूप आनन-फानन,
बस जहां तहां हुआ।
मेरे सफ़र का अब तक,
श्री गणेश कहां हुआ।
गंतव्य हेतु मुझको,दृढ़ संकल्प उठाना है,
मेरे कदमों को सात समंदर पार जाना है।
मैं सोचता हूं कुछ यहां,
पर हो जाता है कुछ।
जो ना सोचूं क्यों रोज-रोज,
होता रहता सब कुछ।
जो सोच लिया वो करके,दुनिया को दिखाना है,
मेरे कदमों को सात समंदर पार जाना है।
आगे-आगे जो भी होगा,
वो देखा जाएगा।
है ज्ञात हमें कि ,
एक बार में ना हो पाएगा
चुकता रहे निशाना, पर हर बार लगाना है,
मेरे कदमों को सात समंदर पार जाना है।
बस एक बार जो चल पड़े,
तो फिर कोई बात नहीं।
हमराही मेरा हो कोई,
या मेरे साथ नहीं।
मदद के हम मोहताज नहीं, सबको बतलाना है।
मेरे कदमों को सात समंदर पार जाना है।
जो विघ्न बाधा रोड़ा पथ में,
आएगा देखेंगे।
आए तूफां सैलाब रुख,
हम उसका मोड़ेंगे।
जिस ओर से सारे लौट चुके, उस ओर जाना है।
मेरे कदमों को सात समंदर पार जाना है।