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Thursday, November 14, 2019

'कोयल'


🌺🌺 साहित्य सिंधु 🌺🌺
हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति



    बाल कविता
    शीर्षक- 'कोयल'

कभी-कभी क्यों आती कोयल,
सबके मन को भाती कोयल।
डाल-डाल पर फुदक-फुदक कर,
मीठे सुर में गाती कोयल।

रोज सवेरे आती हो तुम,
मीठे गीत सुनाती हो तुम।
मीठे-मीठे गीत सुना कर,
सबका मन हर्षाती कोयल।

कभी तो मेरे आंगन आओ,
मुन्ना-मुन्नी को बहलाओ।
दौड़ लगाते तेरे पीछे,
इतना क्यों सताती कोयल।

मृदुल कंठ कहां से पाया,
जो सारे जग को है भाया।
आमों के मौसम में आकर,
फिर कहां उड़ जाती कोयल।
              
                                  ' शर्मा धर्मेंद्र '


Monday, November 04, 2019

'मेरी मां'


🌺🌺 साहित्य सिंधु🌺🌺
हमारा साहित्य हमारी संस्कृति



बाल कविता
शीर्षक-'मेरी मां'

भोली-भाली मेरी मां,
प्यारी-प्यारी मेरी मां
दूध-मलाई मुझको देती,
 जग में न्यारी मेरी मां।

कान पकड़कर मुझे सिखाती,
उठ बैठ भी कभी कराती
भले-बुरे का भेद बताकर,
ज्ञान दिलाती मेरी मां।
        
                      'शर्मा धर्मेंद्र ''