🌺साहित्य सिंधु 🌺
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पद्य रचना
विधा-कविता
शीर्षक- ' मैं '
पीपल,बरगद की छांव सा- मैं,
गहरी दरिया में नाव-सा मैं।
गहरी दरिया में नाव-सा मैं।
कभी पतझड़,बसंत कभी बरसात रहूंगा,
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
बात का पक्का हूं,
इंसान सच्चा हूं।
खड़ा हर वक्त सच के साथ रहूंगा,
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
जिस्म महकता मेरा इमानदारी से,
रिश्ता सबसे मेरा,दुराचारी से, सदाचारी से।
गले लगाकर शत्रुओं के भी साथ रहूंगा,
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
जीवन जैसा भी है मेरा,
संतोष ही महाधन है मेरा।
घोर दरिद्रता,अभाव में भी न उदास रहूंगा,
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
बड़ी हैसियत से क्या लेना-देना,
खालूं, खिला दूं प्रभु बस इतना दे देना।
मुस्कुराता अपनी झोपड़ी के पास रहूंगा,
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
श्रेष्ठ बन जाने की तमन्ना नहीं,
बिसात भूलकर जीवन हमें जीना नहीं।
आसमां बनकर भी ज़मीं के साथ रहूंगा,
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
हाथों मेरे ना कोई बुराई हो,
कुछ हो अगर तो किसी की भलाई हो।
यथाशक्ति दान धर्म पूण्य की चाह रखूंगा
यथाशक्ति दान धर्म पूण्य की चाह रखूंगा
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
'शर्मा धर्मेंद्र'