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Wednesday, August 24, 2022

मैं हार गया तुमसे

 


शीर्षक -' मैं हार गया तुमसे '

विधा-कविता

1

मैं खुद पर क्या अभिमान करूं,

जग में अपना क्या नाम करूं।

तु  ना  होती , मैं  ना  होता,

मैं  तो  हूं  मां तुझसे।

मां जीत  गई मुझसे,

मैं हार गया तुमसे

2

मुझे शून्य से गर्भ में लाने तक,

नौमाह कष्ट उठाने तक।

अपने लल्ला की खातिर तो,

सहा कष्ट असह्य सबसे।

मां जीत  गई  मुझसे 

मैं हार गया तुमसे

3

जो प्रसव पीड़ा का कष्ट सहा,

मातृत्व तेरा  स्पष्ट रहा।

घर-घर बच्चे मुस्काते हैं,

गुलाब के फूलों-से

मां जीत  गई मुझसे,

मैं हार गया तुमसे

4

स्नेह सुधा बरसाती तुम,

जग में ठुकराई जाती तुम।

तेरी ममता के आगे तो,

सारे रिश्ते फीके।

मां जीत  गई मुझसे,

मैं हार गया तुमसे

5

धन-दौलत,शोहरत सब पाया,

उऋण ना तुमसे हो पाया।

न कर्ज दूध का भर पाया ,

जीवन भर मां तेरे।

मां जीत  गई मुझसे,

मैं हार गया तुमसे


✒️👉रचनाकार-' धर्मेंद्र कुमार शर्मा '

Wednesday, May 13, 2020

'देश'


🌺साहित्य सिंधु 🌺
  हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति
Our blog 
साहित्य सिंधु की कलम से.....


पद्य रचना
विधा-कविता
शीर्षक-'देश!'

घाव इसने दिया या उसने,
आखिर दिल दुखाया तेरा किसने?
नाराज क्यों हो,बताओ तो हमें?
देश ! 
क्या हो गया है तुम्हें,
कि कुछ हो रहा है हमें?


चीख-पुकार आह निकल रही है।
हिंसा की चिंगारी कहां सुलग रही है?
ज्वाला भड़का कौन जला रहा है तुम्हें?
देश ! 
क्या हो गया है तुम्हें,
कि कुछ हो रहा है हमें ?


हथियार से वार किसने किया?
खुद को तुझ पर वार किसने दिया?
छीन गया,क्या मिल गया तुम्हें?
देश ! 
क्या हो गया है तुम्हें,
कि कुछ हो रहा है हमें ?


सब कुछ किसके पक्ष में है?
बता कौन तेरे विपक्ष में है?
विवश कर वश में किसने किया तुम्हें?
देश ! 
क्या हो गया है तुम्हें,
कि कुछ हो रहा है हमें ?


अस्मिता को चिता में कौन जला रहा है?
अपराधों का बवंडर कौन उठा रहा है?
जघन्य मंशा लिए कौन घूर रहा है तुम्हें?
देश ! 
क्या हो गया है तुम्हें,
कि कुछ हो रहा है हमें ?


प्रीत की रीत चलाने वाले श्याम कहां गए?
मर्यादा पुरुषोत्तम वो श्रीराम कहां गए?
कंस-रावण बन,कौन सता रहा है तुम्हें?
देश ! 
क्या हो गया है तुम्हें,
कि कुछ हो रहा है हमें ?

                                            'शर्मा धर्मेंद्र'