शीर्षक -' मैं हार गया तुमसे '
विधा-कविता
1
मैं खुद पर क्या अभिमान करूं,
जग में अपना क्या नाम करूं।
तु ना होती , मैं ना होता,
मैं तो हूं मां तुझसे।
मां जीत गई मुझसे,
मैं हार गया तुमसे
2
मुझे शून्य से गर्भ में लाने तक,
नौमाह कष्ट उठाने तक।
अपने लल्ला की खातिर तो,
सहा कष्ट असह्य सबसे।
मां जीत गई मुझसे
मैं हार गया तुमसे
3
जो प्रसव पीड़ा का कष्ट सहा,
मातृत्व तेरा स्पष्ट रहा।
घर-घर बच्चे मुस्काते हैं,
गुलाब के फूलों-से
मां जीत गई मुझसे,
मैं हार गया तुमसे
4
स्नेह सुधा बरसाती तुम,
जग में ठुकराई जाती तुम।
तेरी ममता के आगे तो,
सारे रिश्ते फीके।
मां जीत गई मुझसे,
मैं हार गया तुमसे
5
धन-दौलत,शोहरत सब पाया,
उऋण ना तुमसे हो पाया।
न कर्ज दूध का भर पाया ,
जीवन भर मां तेरे।
मां जीत गई मुझसे,
मैं हार गया तुमसे
✒️👉रचनाकार-' धर्मेंद्र कुमार शर्मा '