🌺 साहित्य सिंधु 🌺
हमारा साहित्य हमारी संस्कृति
शीर्षक-'लिखने लगा हूं'
जहां में जाहिल सा
तूफां में साहिल सा
तूफां में साहिल सा
दिखने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
अपने हालात पर
बिस्तर में रात भर
सिसकने लगा हूं,
अब मैं लिखने लगा हूं।
अपने हालात पर
बिस्तर में रात भर
सिसकने लगा हूं,
अब मैं लिखने लगा हूं।
कुंठित संसार में
भावों के धार में
भीगने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
शहर कभी गांव में
धूप कभी छांव में
दिखने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
किसी के तन को
किसी के मन को
खींचने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
पसीने की बूंद से
धरती को खून से
सींचने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
प्रीत कभी प्रहार से
दुश्मन और यार से
मिलने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
खुद के काम पर
गैरों के नाम पर
बिकने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
मंजिल की खोज में
मुश्किल की गोद में
टिकने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
3 comments:
Keep it up sir
धन्यवाद! आप कौन हैं श्रीमान? आपको कविता कैसी लगी बताने की कृपा करें और हमें अपना सुझाव भेजें
Ur student sir
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