🌺साहित्य सिंधु 🌺
हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति
Our blog
Our blog
पद्य रचना
विधा-कविता
शीर्षक- ' डर '
कांटो से है डर कहां?
डर तो है गुलाब से,
देखना!
हिसाब से।
डर कहां दिल टूटने का?
डर तो है ख्वाब से,
देखना!
हिसाब से।
झूठ से है डर कहां?
डर तो है इंसाफ से,
देखना!
हिसाब से।
डर कहां बदनामी से?
डर है उसके दाग से,
देखना!
हिसाब से।
खंजर चुभे ये डर कहां?
डर चुभने वाली बात से,
देखना!
हिसाब से।
डर कहां हानि से खुद के?
डर है उनके लाभ से,
देखना!
हिसाब से।
खोने से है डर कहां?
डर है उसकी याद से,
देखना!
हिसाब से।
डर कहां है गैरों से?
डर है अपने आप से,
देखना!
हिसाब से।
'शर्मा धर्मेंद्र'।
No comments:
Post a Comment