Monday, October 14, 2019

* उसपार तू चल


🌺साहित्य सिंधु🌺
हमारा साहित्य,हमारी संस्कृति


पद्य रचना:
शीर्षक-'उस पार तू चल'
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इस पार तो केवल डर ही डर
फैला है देख तू जिधर-उधर,
कुंवा है इधर, खाई है उधर
जाएगा बचके बोल किधर।
इस डर पर विजय जो पाना है
तो डूब सिंधु की धार में चल
राही रे उठ उस पार तू चल।

चल लपक-झपक मनमानी कर
कुछ कपट कुपित नादानी कर,
साधु मन को अभिमानी कर
सूरज की आग को पानी कर।
कर शंखनाद दिग्गज डोले,
सिंहों-सा कर हुंकार तू चल।
राही रे उठ उस पार तू चल।

बारिश हो मूसलाधार यदि
नदियां उफने लगातार यदि,
हो बिजली की बौछार यदि
करे डगमग जो पतवार यदि।
कर बलि स्वयं की आगे बढ़,
मुड़ मत जीवन को वार तू चल
राही रे उठ उस पार तू चल।

सागर का नीर सुखा लो तुम
हाथों पर अचल उठा लो तुम
ब्रह्मांड को माप भी डालो तुम
अंतर में जुनूं जब पा लो तुम
मैं की शक्ति क्यों भूल रहा,
अपने बल को पहचान तू चल
राही रे उठ उस पार तू चल।

कुछ भी कर बच ना सकेगा तू
मृत्यू का ग्रास बनेगा तू,
बंद पिंजरे में क्या रहेगा तू
क्या संकट से ना लड़ेगा तू।
तय मरना कल या आज है तो
कल की मत सोच मर आज तू चल
राही रे उठ उस पार तू चल।

अंतिम तक जोर लगाओ तूम 
मन का विश्वास जगाओ तुम
जरा जोश जुनून से आओ तुम
फिर एक छलांग लगाओ तुम
गिर-गिर कर उठ ,उठ-उठ कर गिर 
हर बार तू उठ हर बार तू चल
राही रे उठ उस पार तू चल।

हाथों में जो है लकीर बना
देखा जिसने वो फकीर बना
जो वीर  धीर गंभीर बना
जग उसका ही जागीर बना
किस्मत के भरोसे बैठ ना अब
सुन मंजिल की पुकार तू चल
राही रे उठ उस पार तू चल।
राही रे उठ उस पार तू चल।

                                        'शर्मा धर्मेंद्र'







Sunday, October 13, 2019

* ईमानदारी



🌺साहित्य सिंधु🌺
हमारा साहित्य,हमारी संस्कृति



पद्य रचना:

शीर्षक-'ईमानदारी'

तरक्की के शाख पर चढ़ना,
ईमानदारी को पहले ताक पर रखना।

दूर तक  जा सकते हो

एक अच्छा मुकाम पा सकते हो
गरीबों का हक बांट कर रखना, 
ईमानदारी को पहले ताक पर रखना।

रात-दिन काट लो मेहनत में गिन-गिन 
फूटी कौड़ी ना रुकेगी हथेली पर एक भी दिन
ध्यान जमीरे ख्यालात पर रखना,
ईमानदारी को पहले ताक पर रखना।

बात औरों के लाभ की मत छोड़ दो
अपने लिए औरों का सिर मत फोड़ दो
ख्याल किसी के माली हालात पर रखना,
ईमानदारी को पहले ताक पर रखना।

ऊंच-नीच की खाई पाट लो
आपस में बराबर बांट लो
श्रम अपना ही अपने हाथ पर रखना
ईमानदारी को पहले ताक पर रखना।

बनूंगा अमीर यह सोचते सोचते
उम्र ढल ज‌एगी आंसू पोंछते- पोछते
ख्याल जरूर इस बात पर रखना
ईमानदारी को पहले ताक पर रखना।


                                                 
                                      'शर्मा धर्मेंद्र'

Saturday, October 12, 2019

* लिखने लगा हूं


🌺 साहित्य सिंधु 🌺 

हमारा साहित्य हमारी संस्कृति



                             
पद्य रचना :

शीर्षक-'लिखने लगा हूं'


           जहां में जाहिल सा
           तूफां में साहिल सा
           दिखने लगा हूं ,
           अब मैं लिखने लगा हूं।

           अपने हालात पर
           बिस्तर में रात भर
           सिसकने  लगा हूं,
           अब मैं लिखने लगा हूं।

           कुंठित संसार में
           भावों के धार में
           भीगने लगा हूं ,
           अब मैं लिखने लगा हूं।

           शहर कभी गांव में
           धूप कभी छांव में
           दिखने लगा हूं ,
           अब मैं लिखने लगा हूं।

           किसी के तन को
           किसी के मन को
           खींचने लगा हूं ,
           अब मैं लिखने लगा हूं।

           पसीने की बूंद से 
           धरती को खून से
           सींचने लगा हूं ,
           अब मैं लिखने लगा हूं।

           प्रीत कभी प्रहार से
           दुश्मन और यार से
           मिलने लगा हूं ,
           अब मैं लिखने लगा हूं।

           खुद के काम पर
           गैरों के नाम पर
           बिकने लगा हूं ,
           अब मैं लिखने लगा हूं।

           मंजिल की खोज में
           मुश्किल की गोद में
           टिकने लगा हूं ,
           अब मैं लिखने लगा हूं।
                                                      
                                             'शर्मा धर्मेंद्र'


* लेखक की अभिव्यक्ति

       

🌺 साहित्य सिंधु 🌺

          हमारा साहित्य हमारी संस्कृति        

  

             लेखक- धर्मेंद्र कुमार शर्मा ।           

समस्त साहित्य प्रेमी व प्रबुद्धजन सहृदय वंदन।
आपकी रचनाओं व आप सब को प्रेरणा स्रोत मानकर अपने विचारों ,अनुभवों व भावों  को लेखन के माध्यम से आपके समक्ष व्यक्त करने का एक छोटा सा पहल कर रहा हूं।

आप सबों से अपेक्षा करता हूं कि हिंदी साहित्य लेखन में हमारी त्रुटियों को दूर कर  आप सब एक कुशल मार्गदर्शक के रूप में सहायक बनेंगे।

साथ ही प्रिय पाठक गणों से भी वंदन सहित कहना चाहता हूं कि हमारी रचनाओं की त्रुटियों को दूर करने हेतु समय-समय पर हमारा मार्गदर्शन करते रहें।
      

वंदन!