🌺साहित्य सिंधु 🌺
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पद्य रचना
विधा-कविता
शीर्षक- ' स्वीकार '
कुछ सोचो,तुम चिंतन एक बार करो,
क्या मिलेगा यदि चिंता सौ बार करो
जो वश में नहीं,उस पर बहस बेकार करना होगा,
जो जीवन मिला विधाता से उसे स्वीकार करना होगा।
कुछ है कुछ नहीं भी,
जितना मिला उतना ही सही।
व्यर्थ कुछ और मिलने का इंतजार करना होगा,
जो जीवन मिला विधाता से उसे स्वीकार करना होगा।
किसी को धन मिला,
किसी को मन मिला।
जो मिला उसी को बरकरार करना होगा,
जो जीवन मिला विधाता से उसे स्वीकार करना होगा।
गुमान उन्हें अमीरी का,
आन तुम्हें फकीरी का।
जो है उसी पर श्रृंगार करना होगा,
जो जीवन मिला विधाता से उसे स्वीकार करना होगा।
लकीर मत देख अपने हाथ का,
जरूर मिलेगा तुम्हारे भाग्य का।
वक्त का थोड़ा इंतजार करना होगा।
जो जीवन मिला विधाता से उसे स्वीकार करना होगा।
खुश रह ना तनिक अफसोस कर,
संभाल खुद को जरा संतोष कर।
व्यर्थ अभिलाषा हजार करना होगा
जो जीवन मिला विधाता से उसे स्वीकार करना होगा।
लूटे पांडवों का सब लौट गया,
देखा अभिमान कौरवों का टूट गया।
हक की हकीकत से ही सरोकार रखना होगा,
जो जीवन मिला विधाता से उसे स्वीकार करना होगा।
सर्वदा सवार रह कर्म पथ पर,
चल उठ आज एक शपथ कर।
पाना है तो प्रयत्न हर बार करना होगा,
जो जीवन मिला विधाता से उसे स्वीकार करना होगा।
'शर्मा धर्मेंद्र'