🌺🌺 साहित्य सिंधु 🌺🌺
हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति
पद्य रचना:
शीर्षक-'मानवता का दीप'
जब दीप जले मानवता का
सृष्टि जगमग हो जाएगी,
कण कण में बसे परमात्मा की
तब रचना पूर्ण हो जाएगी।
हृदय में भरा जो दोष यहां
वह दोष जहां मिट जाएगा,
हर भेद वहां खुल जाएगी
मानव निर्मल बन जाएगा।
खिले उद्यान अहिंसा का
जीवन की कली मुस्काएगी,
कण कण में बसे परमात्मा की
तब रचना पूर्ण हो जाएगी।
मंदिर ना अलग ,मस्जिद ना अलग
ना गिरजाघर गुरुद्वारा हो,
जीने भी दें ,जी लें भी सभी
किसी का ना कोई हत्यारा हो।
जब परहित की मधुबन जो यहां
फल जाएगी फुल जाएगी,
कण कण में बसे परमात्मा की
तब रचना पूर्ण हो जाएगी।
मानवता का यह दीप चलो
हम मिलकर साथ जलाएंगे,
होआंधी या तूफान कोई
इस लौ को सदा बचाएंगे
जीवन को बचाने जीवन जब
रक्षा संकल्प उठाएगी
कण कण में बसे परमात्मा की
तब रचना पूर्ण हो जाएगी।
'शर्मा धर्मेंद्र'
3 comments:
Right sir
Ur poem is superb
Right sir
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