Saturday, November 28, 2020
Thursday, November 19, 2020
Friday, September 04, 2020
ईश्वर की अनुभूति
🌺साहित्य सिंधु 🌺
हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति
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साहित्य सिंधु की कलम से.....
संस्मरण - ' ईश्वर की अनुभूति '
लेखक - धर्मेंद्र कुमार शर्मा
वक्त 2011-2012 का था। हमारी बी.ए. की परीक्षा गांव से लगभग 50 किलोमीटर दूर औरंगाबाद शहर में हो रही थी। गांव से हम दो मित्र एक साथ हर दिन मोटरसाइकिल से जाया करते थे। मोटरसाइकिल हमारे दूसरे मित्र की थी। 10 बजे एग्जाम सेंटर पर पहुंचना पड़ता था।
एक दिन हम दोनों सुबह 7:00 बजे घर से निकले, गांव से लगभग 3 किलोमीटर दूर एक छोटे से बाजार बड़ेम में पहुंचते-पहुंचते हमारे मित्र की मोटरसाइकिल खराब हो गई । धक से मेरा कलेजा बैठ गया, अब तो आज की परीक्षा छूटी । बी.ए. तृतीय वर्ष की परीक्षा थी, एक विषय की भी परीक्षा छूट गई तो पूरा तीन साल बरबाद। हमारे मित्र ने कहा यार किसी से गाड़ी मांगनी पड़ेगी। संयोग अच्छा था, हमारे मित्र ने बाजार में जान पहचान के लोगों से किसी तरह एक दूसरी मोटरसाइकिल मांग ली अपनी बाइक वहीं लगा दी। 8:00 यहीं बज चुका था। जिसने बाइक दी उस भले मानस का मन ही मन धन्यवाद एवं असीम आभार प्रकट करते हुए मैं आश्वस्त हो गया कि अब परीक्षा नहीं छुटेगी । पुनः हम दोनों परीक्षा के लिए निकल चुके थे।
कहा गया है कि संपत्ति के साथ संपत्ति और विपत्ति के साथ विपत्ती भागती है। संपत्ति की तो बात आज थी नहीं लेकिन विपत्ति आज पूरी तैयारियों के साथ हम दोनों के गले पड़ चुकी थी। लगभग 1 घंटे बाद 25-30 किलोमीटर मीटर की दूरी तय करते-करते यह मोटरसाइकिल भी धोखा दे गई और एक पेट्रोल पंप पर जाते-जाते बारून हाईवे पर पूरी तरह सीज हो गई। अब हम अपनी दशा क्या बताएं , मेरे शरीर में काटो तो खून नहीं, सांसें थम गई ,हताश, निराश पेट्रोल पंप पर हाथ पर हाथ धरे खड़ा हो गया। 9:30 बज चुका था परीक्षा प्रारंभ होने में केवल आधा घंटा शेष घंटा रह गया था। एक मित्र का फोन भी आ रहा था कि कहां हैं जल्दी पहुंचिए परीक्षा हॉल में हमलोग बैठ गए हैं ।हमारी व्यग्रताऔर बढ़ गई सोचने लगा आज कैसा दिन है ? पता नहीं घर लौटते-लौटते तक क्या होनी लिखी है? खैर, आकाश को अनंत विश्वास के साथ एक बार देखा और फिर ईश्वर की शरण में आज की समस्या को समर्पित कर दिया और कहा कि प्रभु आज का दिन तुम्हारे ऊपर ही है। चाहे आप जैसे बेंड़ा पार करें।
पेट्रोल पंप पर हमारे मित्र उस मोटरसाइकिल को चालू करने में पसीना बहा रहे थे । थक गए लेकिन मोटरसाइकिल चालू नहीं हुई। संयोग ये रहा कि दोनों ही बार कहीं बीच रास्ते में मोटरसाइकिल खराब नहीं हुई। ईश्वर को याद करते मैं सोच ही रहा था कि कोई मोटरसाइकिल सवार मिल जाता तो विनती करके किसी तरह परीक्षा केंद्र तक पहुंच जाता। इतना सोचना था कि अचानक से एक मोटरसाइकिल सवार आता हुआ दिखाई दिया। हम दोनों ने हाथ दिया उस भले आदमी ने मोटरसाइकिल रोक दी। हमने अपनी सारी घटना बताई वह भला व्यक्ति हम दोनों की मजबूरी समझ गया और दोनों को लेकर चल पड़ा। ईश्वर को कोटी कोटी धन्यवाद प्रणाम करके हम उस भले आदमी के मोटरसाइकिल पर सवार ऐसे उड़ते जा रहे थे जैसे स्वयं भगवान हमें अपने कंधों पर बिठाकर परीक्षा केंद्र तक पहुंचाने जा रहे हैं। आज पूर्ण रूप से हमें ईश्वर के होने की अनुभूति हो रही थी।पूर्ण विश्वास हो गया कि ईश्वर है और वह हृदय से पुकारने वालों की मदद भी अवश्य करता है।
बेचारे उस व्यक्ति ने हम दोनों को परीक्षा केंद्र तक पहुंचा दिया 10:30 बज चुके थे सभी परीक्षार्थी परीक्षा केंद्र पर प्रश्न पत्र और उत्तर पत्र लेकर लिखने बैठ चुके थे। हम दोनों भी पहुंचे और क्लास के शिक्षकों से अपनी आपबीती सुनाई उनकी भी सहानुभूति मिली और ईश्वर की कृपा से हमारी परीक्षा छुटने से बच गई।
आज की होनी इतना ही नहीं थी संध्या घर लौटते समय हम दोनों मित्रों के साथ दुर्घटना भी हो गई । मामूली चोटें आई और रात 8:00 बजते-बजते घर पहुंचा।
घर की ड्योढ़ी में कागज की तस्वीर पर विराजमान हमने अपने इष्ट देव भोलेनाथ को प्रणाम किया। और मां को आज के दिन का सारा हाल सुनाया। मां दंग रह गई। एक बार फिर मुझे पूर्ण अनुभूति हो चुकी थी कि कहीं ना कहीं ईश्वर है।
रचनाकार-धर्मेन्द्र कुमार शर्मा
Thursday, May 28, 2020
'स्वीकार'
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Saturday, May 23, 2020
'डर'
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डर कहां दिल टूटने का?
झूठ से है डर कहां?
डर कहां बदनामी से?
खंजर चुभे ये डर कहां?
डर कहां हानि से खुद के?
खोने से है डर कहां?
डर कहां है गैरों से?
Thursday, May 21, 2020
'मैं'
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गहरी दरिया में नाव-सा मैं।
यथाशक्ति दान धर्म पूण्य की चाह रखूंगा
Sunday, May 17, 2020
'कोरोना'
🌺साहित्य सिंधु 🌺
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Thursday, May 14, 2020
'पढ़ेगा कौन..?'
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Wednesday, May 13, 2020
'देश'
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Sunday, May 10, 2020
कोरोना गीत
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(भोजपुरी गीत)
Sunday, April 12, 2020
हिंदी शायरी आकृति
Tuesday, January 07, 2020
'आजकल के लईन'
शीर्षक- 'आज-कल के लइकन
(मगही आंचलिक हास्य कविता)
संदेश- समकालीन युवा पीढ़ी की चंचलता एवं स्वच्छंदता से पाठकों को अवगत कराना,
किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाते हुए पाठकों का पूर्ण मनोरंजन करना।
लेखक स्वयं ऐसी भावनाओं के वशीभूत पूर्व काल में रह चुका है।
आज-कल के लइकन काहां सुनई हथ।
ना चले के लूर,
ना बोले के सहूर।
का जनि कईसन पढाई करई हथ,
आज-कल के लइकन काहां सुनई हथ।
कहब कि सुन-सुन,
करे लगतन भुन-भुन।
घुनूर-घुनूर मने में गुरगुराई रहई हथ,
आज-कल के लइकन काहां सुनई हथ।
दिन-रात इयार के,
रहतन दरबार में,
घरे से खाके टिकीया-उडान भगई हथ,
आज-कल के लइकन काहां सुनई हथ।
सेंट-मेंट मार के,
जूलफी संवार के।
फटफटिया प दिन भ लदाएल रहई हथ,
चेत ना फिकीर,
उड़वइ हथ तितीर
बाबू जी खेत में मरई-धंसई हथ,
कहई थी एने,
शर्मा धर्मेंद्र