Monday, November 04, 2019
Thursday, October 31, 2019
'मानवता का दीप'
🌺🌺 साहित्य सिंधु 🌺🌺
हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति
पद्य रचना:
शीर्षक-'मानवता का दीप'
जब दीप जले मानवता का
सृष्टि जगमग हो जाएगी,
कण कण में बसे परमात्मा की
तब रचना पूर्ण हो जाएगी।
हृदय में भरा जो दोष यहां
वह दोष जहां मिट जाएगा,
हर भेद वहां खुल जाएगी
मानव निर्मल बन जाएगा।
खिले उद्यान अहिंसा का
जीवन की कली मुस्काएगी,
कण कण में बसे परमात्मा की
तब रचना पूर्ण हो जाएगी।
मंदिर ना अलग ,मस्जिद ना अलग
ना गिरजाघर गुरुद्वारा हो,
जीने भी दें ,जी लें भी सभी
किसी का ना कोई हत्यारा हो।
जब परहित की मधुबन जो यहां
फल जाएगी फुल जाएगी,
कण कण में बसे परमात्मा की
तब रचना पूर्ण हो जाएगी।
मानवता का यह दीप चलो
हम मिलकर साथ जलाएंगे,
होआंधी या तूफान कोई
इस लौ को सदा बचाएंगे
जीवन को बचाने जीवन जब
रक्षा संकल्प उठाएगी
कण कण में बसे परमात्मा की
तब रचना पूर्ण हो जाएगी।
'शर्मा धर्मेंद्र'
Monday, October 28, 2019
'सात समंदर पार'
🌺🌺 साहित्य सिंधु 🌺🌺
हमारा साहित्य,हमारी संस्कृति
शीर्षक-'सात समंदर पार'
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
ना धूल हटा मेरे पथ का,निशान बनाना है,
मेरे कदमों को सात समंदर पार जाना है।
दौड़-धूप आनन-फानन,
बस जहां तहां हुआ।
मेरे सफ़र का अब तक,
श्री गणेश कहां हुआ।
गंतव्य हेतु मुझको,दृढ़ संकल्प उठाना है,
मेरे कदमों को सात समंदर पार जाना है।
मैं सोचता हूं कुछ यहां,
पर हो जाता है कुछ।
जो ना सोचूं क्यों रोज-रोज,
होता रहता सब कुछ।
जो सोच लिया वो करके,दुनिया को दिखाना है,
मेरे कदमों को सात समंदर पार जाना है।
आगे-आगे जो भी होगा,
वो देखा जाएगा।
है ज्ञात हमें कि ,
एक बार में ना हो पाएगा
चुकता रहे निशाना, पर हर बार लगाना है,
मेरे कदमों को सात समंदर पार जाना है।
बस एक बार जो चल पड़े,
तो फिर कोई बात नहीं।
हमराही मेरा हो कोई,
या मेरे साथ नहीं।
मदद के हम मोहताज नहीं, सबको बतलाना है।
मेरे कदमों को सात समंदर पार जाना है।
जो विघ्न बाधा रोड़ा पथ में,
आएगा देखेंगे।
आए तूफां सैलाब रुख,
हम उसका मोड़ेंगे।
जिस ओर से सारे लौट चुके, उस ओर जाना है।
मेरे कदमों को सात समंदर पार जाना है।
Monday, October 21, 2019
* चौक
🌺🌺साहित्य सिंधु🌺🌺
हमारा साहित्य,हमारी संस्कृति
पद्य रचना:
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ये कितनी पीढ़ियां देख चुका,
एक पीढ़ी अब भी देख रहा
और कितनी पीढ़ियां देखेगा,
यह ज्ञात ना होने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
मैं सदा ही सत्य की राह चलूं,
गीता पर रखकर हाथ कहूं
गीता पर रखकर हाथ कहूं
महाभारत छिड़ता रोज यहां,
षडयंत्र सब ने कर डाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
जरा ठहरो मेरी बात सुनो,
जरा ठहरो मेरी बात सुनो,
निश्चित ना कोई हालात सुनो
कभी जोखिम तो कभी जश्न यहां,
इस पथ से गुजरने वाला है।
इस पथ से गुजरने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
कभी खट्टी-मीठी बात चले,
शुभ दिन कभी काली रात रहे
सुख-दुख,तृप्ति कभी प्यास यहां,
महादान कभी घोटाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
होरी, चैता हर ताल बजे,
हुलसे बसंत हर साल सजे
कभी प्रीत के गीत की गूंज उठे,
कभी हिंसा होने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
हमने इसकी सच्चाई को,
अच्छाई और बुराई को
जो झेल गया कह दूं कैसे,
कुछ बात छुपाने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
किसका सफर कब तक है यहां,
रुक जाए कोई जाने कहां
हिसाब किताब बराबर तो,
ये सबका रखनेवाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
कई आए कितने चले गए,
कुछ बुरे भी थे कुछ भले गए
ये मंच वही पुराना बस,
किरदार बदलने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
Wednesday, October 16, 2019
* लेखक की आत्मानुभूति
🌺साहित्य सिंधु🌺
हमारा साहित्य,हमारी संस्कृति
गद्य रचना:
(लेखक की आत्मानुभूति)
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जीवन पहले से ही तैयार की हुई एक पुस्तक है। जिसका हर एक पृष्ठ प्रतिदिन क्रमानुसार खुलता है और हमारे जीवन में एक नया अध्याय जुड़ता रहता है।
हां, वैकल्पिक तौर पर इस पुस्तक में जीवन रूपी कुछ खाली पृष्ठ भी संलग्न किए गए हैं जिनमें हम अपने कर्मों की लेखनी द्वारा नए अध्यायों को समाविष्ट करते हैं और अंततः हमें सुख या दुख का अधिकारी बनना पड़ता है।
' धर्मेंद्र कुमार शर्मा '
Tuesday, October 15, 2019
* साहित्य परिचय
🌺🌺साहित्य सिंधु🌺🌺
हमारा साहित्य,हमारी संस्कृति
काव्य परिचय:
हित का भाव होना ही साहित्य है।
* कुछ विद्वानों के अनुसार हित कारक
रचना का नाम ही साहित्य है।
* साहित्य शब्द ,अर्थ और भावनाओं
की वह त्रिवेणी है जो जनहित
की धारा के साथ उच्च
आदर्शों की दिशा में
प्रवाहित होती है।
* साहित्य का तात्पर्य अब कविता,
कहानी उपन्यास,नाटक,आत्मकथा
अर्थात गद्य और पद्य की सभी विधाओं
से है।
काव्य परिचय:
"शब्दार्थो सहीतौ काव्यम" अर्थात
* शब्द और अर्थ का सहित
भाव ही काव्य है।
'वाक्यम् रसात्मकम् काव्यम्'
* अर्थात रसयुक्त वाक्य ही काव्य है।
शर्मा धर्मेंद्र
स्रोत-पुस्तक
Monday, October 14, 2019
* उसपार तू चल
🌺साहित्य सिंधु🌺
हमारा साहित्य,हमारी संस्कृति
पद्य रचना:
शीर्षक-'उस पार तू चल'
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इस पार तो केवल डर ही डर
फैला है देख तू जिधर-उधर,
कुंवा है इधर, खाई है उधर
जाएगा बचके बोल किधर।
इस डर पर विजय जो पाना है
तो डूब सिंधु की धार में चल
राही रे उठ उस पार तू चल।
चल लपक-झपक मनमानी कर
कुछ कपट कुपित नादानी कर,
साधु मन को अभिमानी कर
सूरज की आग को पानी कर।
कर शंखनाद दिग्गज डोले,
सिंहों-सा कर हुंकार तू चल।
राही रे उठ उस पार तू चल।
बारिश हो मूसलाधार यदि
नदियां उफने लगातार यदि,
हो बिजली की बौछार यदि
करे डगमग जो पतवार यदि।
कर बलि स्वयं की आगे बढ़,
मुड़ मत जीवन को वार तू चल
राही रे उठ उस पार तू चल।
सागर का नीर सुखा लो तुम
हाथों पर अचल उठा लो तुम
ब्रह्मांड को माप भी डालो तुम
अंतर में जुनूं जब पा लो तुम
मैं की शक्ति क्यों भूल रहा,
अपने बल को पहचान तू चल
राही रे उठ उस पार तू चल।
कुछ भी कर बच ना सकेगा तू
मृत्यू का ग्रास बनेगा तू,
बंद पिंजरे में क्या रहेगा तू
क्या संकट से ना लड़ेगा तू।
तय मरना कल या आज है तो
कल की मत सोच मर आज तू चल
राही रे उठ उस पार तू चल।
अंतिम तक जोर लगाओ तूम
मन का विश्वास जगाओ तुम
जरा जोश जुनून से आओ तुम
फिर एक छलांग लगाओ तुम
गिर-गिर कर उठ ,उठ-उठ कर गिर
हर बार तू उठ हर बार तू चल
राही रे उठ उस पार तू चल।
हाथों में जो है लकीर बना
देखा जिसने वो फकीर बना
जो वीर धीर गंभीर बना
जग उसका ही जागीर बना
किस्मत के भरोसे बैठ ना अब
सुन मंजिल की पुकार तू चल
राही रे उठ उस पार तू चल।
राही रे उठ उस पार तू चल।
'शर्मा धर्मेंद्र'
Sunday, October 13, 2019
* ईमानदारी
🌺साहित्य सिंधु🌺
हमारा साहित्य,हमारी संस्कृति
पद्य रचना:
शीर्षक-'ईमानदारी'
तरक्की के शाख पर चढ़ना,
ईमानदारी को पहले ताक पर रखना।
दूर तक जा सकते हो
एक अच्छा मुकाम पा सकते हो
गरीबों का हक बांट कर रखना,
ईमानदारी को पहले ताक पर रखना।
रात-दिन काट लो मेहनत में गिन-गिन
फूटी कौड़ी ना रुकेगी हथेली पर एक भी दिन
ध्यान जमीरे ख्यालात पर रखना,
ईमानदारी को पहले ताक पर रखना।
बात औरों के लाभ की मत छोड़ दो
अपने लिए औरों का सिर मत फोड़ दो
ख्याल किसी के माली हालात पर रखना,
ईमानदारी को पहले ताक पर रखना।
ऊंच-नीच की खाई पाट लो
आपस में बराबर बांट लो
श्रम अपना ही अपने हाथ पर रखना
ईमानदारी को पहले ताक पर रखना।
बनूंगा अमीर यह सोचते सोचते
उम्र ढल जएगी आंसू पोंछते- पोछते
ख्याल जरूर इस बात पर रखना
ईमानदारी को पहले ताक पर रखना।
'शर्मा धर्मेंद्र'
Saturday, October 12, 2019
* लिखने लगा हूं
🌺 साहित्य सिंधु 🌺
हमारा साहित्य हमारी संस्कृति
शीर्षक-'लिखने लगा हूं'
जहां में जाहिल सा
तूफां में साहिल सा
तूफां में साहिल सा
दिखने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
अपने हालात पर
बिस्तर में रात भर
सिसकने लगा हूं,
अब मैं लिखने लगा हूं।
अपने हालात पर
बिस्तर में रात भर
सिसकने लगा हूं,
अब मैं लिखने लगा हूं।
कुंठित संसार में
भावों के धार में
भीगने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
शहर कभी गांव में
धूप कभी छांव में
दिखने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
किसी के तन को
किसी के मन को
खींचने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
पसीने की बूंद से
धरती को खून से
सींचने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
प्रीत कभी प्रहार से
दुश्मन और यार से
मिलने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
खुद के काम पर
गैरों के नाम पर
बिकने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
मंजिल की खोज में
मुश्किल की गोद में
टिकने लगा हूं ,
अब मैं लिखने लगा हूं।
'शर्मा धर्मेंद्र'
* लेखक की अभिव्यक्ति
🌺 साहित्य सिंधु 🌺
हमारा साहित्य हमारी संस्कृति
लेखक- धर्मेंद्र कुमार शर्मा ।
समस्त साहित्य प्रेमी व प्रबुद्धजन सहृदय वंदन।
आपकी रचनाओं व आप सब को प्रेरणा स्रोत मानकर अपने विचारों ,अनुभवों व भावों को लेखन के माध्यम से आपके समक्ष व्यक्त करने का एक छोटा सा पहल कर रहा हूं।
आप सबों से अपेक्षा करता हूं कि हिंदी साहित्य लेखन में हमारी त्रुटियों को दूर कर आप सब एक कुशल मार्गदर्शक के रूप में सहायक बनेंगे।
साथ ही प्रिय पाठक गणों से भी वंदन सहित कहना चाहता हूं कि हमारी रचनाओं की त्रुटियों को दूर करने हेतु समय-समय पर हमारा मार्गदर्शन करते रहें।
वंदन!
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