Sunday, May 17, 2020

'कोरोना'


🌺साहित्य सिंधु 🌺
  हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति
Our blog 
                             
साहित्य सिंधु की कलम से.....




पद्य रचना
विधा-कविता
शीर्षक- 'कोरोना'

(मगही आंचलिक हास्य कविता)

इस कविता का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं बल्कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के प्रति लोगों को जागरुक करना,सचेत करना,एवं उनका मनोरंजन करना है।

नाया मेहमान हे,
बाड़ा बदनाम हे।
डरे एकरा सब कोई घर में लुकाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।

दुनिया लाचार हे,
मचल हाहाकार हे।
सुपर पावर देश भी ठेहुना प आएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।

बढ‌ई हाली-हाली हे,
रोग बलशाली हे।
धर‌ई थे ‌‌इ कस के जे तनिको छुआएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।

लाक-डान  बढ़‌ई थे,
कछुआ नियन चल‌ई थे।
सालो भ टूटत ना अ‌इसन बुझाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।

हटे से घट जाएत,
सटे से बढ़ जाएत।
सटही से स‌उसे जहान छितराएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।

 गांव ना शहर गेल,
जे जाहां हल ठहर गेल।
निकलल जे घर से उ कुकुर नियन खदेराएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।

बर-बजार बंद हे,
 मिल‌इत शकरकंद हे।
निमके आउ भात प संतोख बन्हाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।

बड़े-बड़े बाबू साहेब,
अपना के लाट साहेब।
लाक-डाउन तोड़े वाला सोंटा से सोंटाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल सहे।

चानी को‌ई कट‌ई थे,
चानी कोई बंट‌ई थे।
धरमी-अधरमी अबे चिन्हाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।

सडुआना ना ससुरारी के,
नेवता ना हकारी के।
तिलक,बरात,च‌उठारी सब भुलाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।

परकीरती के खेल हे,
सिस्टम सब फेल हे
विज्ञान,वेद,गीता,कुरान सब रखाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल से।

 सामाजिक दूरी बढ़‌ई थे ,
मास्क मुंह प चढ़‌ई थे।
साबुन,सेनेटाइजर खूब हाथ प मलाएल हे,
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।

धीर तनी धरल जाव,
घरवे में रहल जाव।
संकट‌ इ संयम से रहे वाला आयल हे।
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।

धन्यवाद हम कर‌ई थी,
गोड़‌ उनका लग‌ई थी।
कोरोना के जोधा जे सेवा में अझुराएल हे
का कहूं जब से कोरोना इ आएल हे।







Thursday, May 14, 2020

'पढ़ेगा कौन..?'

🌺साहित्य सिंधु 🌺
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साहित्य सिंधु की कलम से.....


पद्य रचना
विधा-कविता
शीर्षक-पढे़गा कौन..?


स्याही खत्म हुई मेरे कलम की,
अब भरेगा कौन?
 लिख तो रहा हूं मैं,
 मगर पढ़ेगा कौन..?

लोग सब हैं समय के अभाव में,
बेचैन,व्यस्त सब जी रहे तनाव में।
   विश्राम शब्दों की छांव में करेगा कौन?

 लिख तो हा हूं मैं,
 मगर पढ़ेगा कौन..?

आओ एक नई बात बताऊंगा,
मैं तुम्हें जिंदगी के पाठ पढ़ाऊंगा।
मेरी पुस्तक का पाठक बनेगा कौन?
 लिख तो रहा हूं मैं,
 मगर पढ़ेगा कौन..?

तुम सोचते हो मैं ही दुखी हूं,
पढ़ कर देख मैं भी दुखी हूं।
विपत्तियों के साथ भी खड़ा रहेगा कौन?
 लिख तो रहा हूं मैं,
 मगर पढ़ेगा कौन..?

मैं लिखता रहूं और कोई ना पढे़,
फिर लेखन की गाड़ी आगे कैसे बढ़े?
मेरे विचारों की सवारी करेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
 मगर पढ़ेगा कौन..?

पन्ने उलट-पुलट के रह जाते हो,
अब कौन पढ़ें,ये सोच के रह जाते हो।
अनंत ज्ञान की हिफाजत करेगा कौन?
 लिख तो रहा हूं मैं
 मगर पढ़ेगा कौन..?

विष को अमृत कर दूं,
मृत को जीवित कर दूं।
मेरे भावों का रसपान करेगा कौन?
   लिख तो रहा हूं मैं,
 मगर पढ़ेगा कौन..?

इंसान,इंसान बने कैसे?
मानव महान बने कैसे?
मेरी अभिव्यक्ति को व्यक्ति समझेगा कोन?
 लिख तो रहा हूं मैं,
 मगर पढ़ेगा कौन..?

उत्तम चरित्र, व्यक्तित्व हो जाए,
जीवन सबका साहित्य हो जाए।
पवित्र पथ पर पांव आखिर धरेगा कौन?
 लिख तो रहा हूं मैं,
 मगर पढ़ेगा कौन..?
'शर्मा धर्मेंद्र'
                                                  

Wednesday, May 13, 2020

'देश'


🌺साहित्य सिंधु 🌺
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साहित्य सिंधु की कलम से.....


पद्य रचना
विधा-कविता
शीर्षक-'देश!'

घाव इसने दिया या उसने,
आखिर दिल दुखाया तेरा किसने?
नाराज क्यों हो,बताओ तो हमें?
देश ! 
क्या हो गया है तुम्हें,
कि कुछ हो रहा है हमें?


चीख-पुकार आह निकल रही है।
हिंसा की चिंगारी कहां सुलग रही है?
ज्वाला भड़का कौन जला रहा है तुम्हें?
देश ! 
क्या हो गया है तुम्हें,
कि कुछ हो रहा है हमें ?


हथियार से वार किसने किया?
खुद को तुझ पर वार किसने दिया?
छीन गया,क्या मिल गया तुम्हें?
देश ! 
क्या हो गया है तुम्हें,
कि कुछ हो रहा है हमें ?


सब कुछ किसके पक्ष में है?
बता कौन तेरे विपक्ष में है?
विवश कर वश में किसने किया तुम्हें?
देश ! 
क्या हो गया है तुम्हें,
कि कुछ हो रहा है हमें ?


अस्मिता को चिता में कौन जला रहा है?
अपराधों का बवंडर कौन उठा रहा है?
जघन्य मंशा लिए कौन घूर रहा है तुम्हें?
देश ! 
क्या हो गया है तुम्हें,
कि कुछ हो रहा है हमें ?


प्रीत की रीत चलाने वाले श्याम कहां गए?
मर्यादा पुरुषोत्तम वो श्रीराम कहां गए?
कंस-रावण बन,कौन सता रहा है तुम्हें?
देश ! 
क्या हो गया है तुम्हें,
कि कुछ हो रहा है हमें ?

                                            'शर्मा धर्मेंद्र'

Sunday, May 10, 2020

कोरोना गीत


🌺साहित्य सिंधु 🌺
  हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति
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साहित्य सिंधु की कलम से.....


प्रिय बंधु जन,
प्राणघातक वैश्विक महामारी 'कोरोना' के प्रकोप से आज दुनिया त्राहि-त्राहि कर रही है। एक गीत के माध्यम से हम संदेश देना चाहते हैं कि सोशल डिस्टेंस बनाएं, सतर्क रहें, सुरक्षित रहें क्योंकि 
"जान है,तो जहान है "


धन्यवाद!



(भोजपुरी गीत)


 जाने   कवन  , दुश्मन   मुद‌ईया  2
   ल‌ईलस अईसन ,विपत्ति बल‌ईया  2
                   दुनिया  के  रोवे  कोना - कोना हो ....2  जा-जा तू जा ए कोरोना हो.....2
                      

  1

                            
   कवन    अधरमी   , अधरम    कऽ   दिहऽलस,
 केकरऽ  कुपुतवा , कुकऽरम कऽ दिहऽलस,
विधि   के   विधान  , भईल   पानी  -  पानी,
 अधऽमी  उ  कवन , अनरऽथ कऽ दिहऽलस।
                  करऽम बा केकऽर , के  फल  भोगे,
                   सांस जिनीगिया के, टूटे रोजे -रोजे।
बंद नईखे होवत रोना-धोना हो..2
     जा-जा तू जा ए कोरोनावायरस हो..2
              
   2
              

  छुआ -छूत  के  बा , ई  महामारी,
दिन  पर  दिन  इ , गोड़ पसारी,
      स्वच्छ रहीं निज ,गृह से ना निकलीं,
जिनगी रही,सह लीं ई लाचारी।
                      सुनऽ ए सजन एगो ,कहावत पुरान बा,
                      बच  के  रहऽ  जान , बा तऽ जहान बा,
होनी -हानी  द‌ईबो जाने ना हो...2
      जा -जा तू जा ए कोरोनावायरस हो..2

जा -जा तू जा जा!
जा -जा तू जा जा!
             जा-जा तू जा ए कोरोना.....
                  

                                                                                                                                  'शर्मा धर्मेंद्र '                                         


Sunday, April 12, 2020

हिंदी शायरी आकृति

साहित्य सिंधु
हमारा साहित्य,हमारी संस्कृति
Our blog
www.sahityasindhu1.blogspot.com
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पद्य रचना
हिंदी शायरी (कविता)
प्रकार-आकृति 
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Tuesday, January 07, 2020

'आजकल के लईन'


🌺🌺 साहित्य सिंधु 🌺🌺
हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति

पद्य रचना
विधा- कविता
शीर्षक- 'आज-कल के ल‌इकन

(मगही आंचलिक हास्य कविता)

संदेश- समकालीन युवा पीढ़ी की चंचलता एवं स्वच्छंदता से पाठकों को अवगत कराना,

किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाते हुए पाठकों का पूर्ण मनोरंजन करना।

लेखक स्वयं ऐसी भावनाओं के वशीभूत पूर्व काल में रह चुका है।


🌺

कान बहिर पीठ, गहींड़ कर‌ई हथ,
आज-कल के ल‌इकन काहां सुन‌ई हथ।

रात के दिन,
आम के नीम,
कहब औंरा, तो बहेरा बुझ‌ई हथ,
आज-कल के ल‌इकन काहां सुन‌ई हथ।

दुनिया लाचार हे,
कहल बेकार हे,
 समझवला प उल्टे समझावे लग‌ई हथ,
आज-कल के ल‌इकन काहां सुन‌ई हथ

लिखावल-पढावल,
प‌इसा लगावल,
बाबूजी के धन ह‌ईन, उड़व‌ई चल‌ई हथ,
आज-कल के ल‌इकन काहां सुन‌ई हथ।

ना चले के लूर,
ना बोले के सहूर।
का जनि क‌ईसन पढा‌ई कर‌ई हथ,
आज-कल के ल‌इकन काहां सुन‌ई हथ।

कहब कि सुन-सुन,
करे लगतन भुन-भुन।
घुनूर-घुनूर मने में गुरगुरा‌ई रह‌ई हथ,
आज-कल के ल‌इकन काहां सुन‌ई हथ।

दिन-रात  इयार के,
रहतन  दरबार में,
घरे से खाके टिकीया-उडान भग‌ई हथ,
आज-कल के ल‌इकन काहां सुन‌ई हथ।

सेंट-मेंट मार के,
जूलफी संवार के।
फटफटिया प दिन भ लदाएल रह‌ई हथ,
आज-कल के ल‌इकन काहां सुन‌ई हथ।

चेत ना  फिकीर,
उड़व‌इ हथ तितीर
बाबू जी खेत में मर‌ई-धंस‌ई हथ,
आज-कल के ल‌इकन काहां सुन‌ई हथ।

कह‌ई थी एने,
तो जाई हथ ओने,
रस्ता बिला‌ई नियन कट‌ई चल‌ई हथ,
आज-कल के ल‌इकन काहां सुन‌ई हथ। 

                                      शर्मा धर्मेंद्र




Tuesday, December 31, 2019

'नया साल'


🌺🌺 साहित्य सिंधु🌺🌺
हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति


पद्य रचना
विधा- कविता
शीर्षक- नया साल

साहित्य सिंधु की ओर से नववर्ष की अनंत शुभकामनाएं!

 मंगल कामना और न‌ए साल का आगाज करते हुए साहित्य सिंधु की ओर से  समर्पित है एक न‌ई रचना  जिसका शीर्षक है-
🌹
🌹'नया साल'🌹
🌹

कर ना कोई खेद तू,
नवीन लक्ष्य भेद तू।
फिर से एक वक्त बेमिसाल आ गया,
चलो फिर से बंधु  एक नया साल आ गया ।

भूत को बिसार दो,
भविष्य को संवार लो।
करने को नया-नया कमाल आ गया,
चलो फिर से बंधु  एक नया साल आ गया ।

मेरा हाल ऐसा है,
तेरा हाल कैसा है?
लेने-देने हर किसी का हाल आ गया,
चलो फिर से बंधु  एक नया साल आ गया ।

स्वस्थ शीतकाल में,
अबकी नए साल में।
लय से लय मिलाओ नया ताल आ गया,
चलो फिर से बंधु  एक नया साल आ गया ।

 तृष्णा ढो रहा कोई,
तृप्त हो रहा कोई।
मालामाल करने या कंगाल आ गया,
चलो फिर से बंधु  एक नया साल आ गया ।

उलझ रहा कोई कहीं,
सुलझ रहा कोई कहीं।
बनके कुछ उत्तर कुछ सवाल आ गया
चलो फिर से बंधु  एक नया साल ।

वैध कोई हो रहा,
कैद कोई हो रहा।
मुक्ति बन रहा किसी का जाल आ गया,
चलो फिर से बंधु  एक नया साल आ गया।

दुख भोगता कोई,
सुख भोगता कोई।
जश्न किसी के लिए जवाल आ गया,
चलो फिर से बंधु  एक नया साल आ गया ।

क्षोभ है ध्यान है,
आगमन-प्रस्थान है।
जन्म बन रहा किसी का काल आ गया,
चलो फिर से बंधु  एक नया साल आ गया ।

हर्ष कर विषाद कर,
न कल हुआ वो आज कर।
मचाने धूम-धाम से धमाल आ गया,
चलो फिर से बंधु  एक नया साल आ गया ।

                             ‌‌‌        'शर्मा धर्मेंद्र'



Sunday, December 15, 2019

'क्या-क्या है?'


🌺🌺साहित्य सिंधु🌺🌺
हमारा साहित्य,हम हमा संस्कृति




पद्य रचना
विधा- कविता
शीर्षक- ' क्या-क्या है? '


दुनिया में तो क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

1

काम है,
क्रोध है,
लोभ है,
मोह है।
और सुन क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

2

सच है,
झूठ है,
तृप्ति है,
भूख है।
और पूछ क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

3

दोस्ती है,
दुश्मनी है,
बनी है,
ठनी है।
सुनता जा क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

4

समर्थन है,
बहिष्कार है,
दंड है,
पुरस्कार है।
अनुमान लगा क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

5

हर्ष है,
विषाद है,
विरोध है,
विवाद है।
और सुनेगा क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

6

नीति है,
अनीति है,
एकता है,
कूटनीति है।
क्या खबर तुझको क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

7

शाम है,
दाम है,
दंड है,
भेद है।
और बताएं क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

8

जन्म है,
मृत्यु है,
बंधन है,
मुक्ति है।
ज्ञात हुआ क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

9

सवाल है,
जवाब है,
हकीकत है,
ख्वाब है।
सोच जरा क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

10

ज्ञान है,
अज्ञान है,
अभिमान है,
स्वाभिमान है,
देख इधर क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

11

अंधेरा है,
  उजाला है,
दान है,
घोटाला है।
चुन ले जरा क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

12

दौलत है,
सोहरत है, 
कुर्बानी है,
शहादत है।
देख-देख क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

13

विष है,
अमृत है,
शहद है,
घृत है।
गौर कर क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

14

योग है, 
वियोग है,
दुर्भाग्य है,
संयोग है।
और सुनेगा क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

15

प्रेम है, 
घृणा है,
तृप्ति है,
तृष्णा है।
कैसे समझाएं क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

16

आसक्ति है,
विरक्ति है,
निर्बलता है,
शक्ति है।
सबको बता क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

17

हिंसा है,
अहिंसा है,
तमाशा है,
चिंता है।
और बताएं क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

18

धर्म है,
अधर्म है,
कर्म है,
विकर्म है।
न जाने और क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

19

स्वर्ग है,
नर्क है,
 समान है,
फर्क है।
मैं भी नहीं जानता क्या-क्या है
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

20

पाप है,
पुण्य हैं,
अनंत है,
शून्य है।
मत पूछ और अभी क्या-क्या है?
पर ढूंढ, तुम्हारे लिए क्या-क्या है?

                        'शर्मा धर्मेंद्र '

Friday, December 13, 2019

'मुझे ज़िंदा कर दो'


🌺🌺साहित्य सिंधु🌺🌺
हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति


पद्य रचना
विधा - कविता
शीर्षक - 'मुझे जिंदा कर दो'

हे! प्रियतम।
है कौन-सा बंधन,
आते नहीं तुम।
अब तो आओ
क्षीण हो रही
प्राणवायु मेरी।
मुझ में अपना
स्वांस भर दो,
स्पर्श कर दो,
छू कर मुझे जिंदा कर दो।

व्याकुल व्याकुल-सा है मन,
प्रेम-विरह प्रताड़ित तन।
तुम अटल आस्था मेरा,
मुझे जीर्ण-शीर्ण, मरणासन्न
काल ने घेरा।
संजीवनी बन निज कर के
मुझको मृदु छुअन से
फिर स्वस्थ कर दो।
स्पर्श कर दो,
छू कर मुझे जिंदा कर दो।


अतृप्त न केवल हम,
अतृप्त भी हो तुम।
विधान यह विधि का,
या है इंसान का।
तुम मेरी,मैं तृष्णा तेरी।
बन बादल प्यासी धरती को
शीतल-शीतल कर दो।
स्पर्श कर दो,
छू कर मुझे जिंदा कर दो।

अनावृष्टि हो, अकाल हो,
जल की एक बूंद तो
अत्यल्प है,अतिलघु,शून्य हैं।
किंतु तृष्णा की तृप्ति
वही एक पहली बूंद है।
आज उस बूंद को
अमृत कर दो।
स्पर्श कर दो,
छू कर मुझे जिंदा कर दो।


                                              शर्मा धर्मेंद्र  






Tuesday, December 10, 2019

'अरमान लाया हूं'


🌺🌺 साहित्य सिंधु🌺🌺
 (हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति)



पद्य रचना
विधा - शायरी ( कविता )
प्रकार - तरन्नुम (मधुर गीत)
शीर्षक- लाया हूं

वर्षों से दबा दिल का,अरमान लाया हूं,
 पहचान बने मेरा अपनी पहचान लाया हूं।

कोई सोना-चांदी या हीरा तुझ पर लुटा ए तो,
तुझ पर मैं लुटाने को,अपना जी जान लाया हूं।

जीवन के झमेले से तो हर कोई हार जाता है,
जो जीत गए उनके लिए इनाम लाया हूं।

कोई भाव से मीठा तो कोई प्रभाव से मीठा है,
जो सबसे मीठा है ऐसी जुबान लाया हूं।

वही कद्र करेगा जो खुद अपना कद्र समझता है,
सम्मान बढे़ सबका मैं खुद सम्मान से आया हूं।

है दफन बहुत दिन से एक जलजला दिल में,
जरा संभल के रहना तुम मैं एक तूफान लाया हूं।

वर्षों से दबा दिल का अरमान लाया हूं,
पहचान बने मेरा अपनी पहचान लाया हूं।

                                         ' धर्मेंद्र कुमार शर्मा '

Friday, November 29, 2019

'बम फटाका सीताराम'


🌺🌺 साहित्य सिंधु 🌺🌺
हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति


बम फटाका सीताराम




बम फटाका सीताराम
बम फटाका सीताराम

पद्य रचना


विधा - कविता

शीर्षक - बम फटाका सीताराम

विशेष आभार व्यक्त करता हूं, मैं अपने परम मित्र श्री अनिल कुमार पाठक जी का जिन्होंने हमारी कविता के भाव के समानांतर अपनी छवि को पाठकों तक पहुंचाने हेतु हमें सहर्ष स्वीकृति प्रदान की।

आशा और विश्वास करता हूं कि पूर्ण रूप से जीवन प्रासंगिक इस मगही हास्य कविता में पाठक अपने आप को  कविता के केंद्र में ढूंढ पाएंगे और यह महसूस कर पाएंगे कि हम  जो जीवन जीते हैं उसके लिए इस कविता की प्रत्येक पंक्तियां कितनी प्रासंगिक है।


🌺 मगही आंचलिक हास्य कविता 🌺
('बम फटाका सीताराम')

1

गांवे-गांवे घूर के,
आएल ही दूर से।
छोट-बड़ सभनी के,
कर‌ई थी परनाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

2

ठीके सामाचार हे,
कुछ कहे के बिचार हे।
 मुंहवां प तनिको ना,
लग‌ई थे लगाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

3

दुनिया में आके,
जनम ‌‌इ पाके।
लगल कि बन गेल,
अब सब काम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

4

जनम तो भरम हल,
लिखल कुछ करम हल।
अ‌इली तो जनली,
कि केतना हे काम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

5

लईका‌ई तो ठीके  से,
बीत गेल नीके से।
खेले आऊ खाए से,
हलक बस काम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


6

चढ़ल जवानी जब,
बढ़ल नदानी तब।
सांझ होवे जहंई,
तह‌ंई बिहान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


7

जहिया सेयान भेली,
छौफुटिया जवान भेली।
अगुवा बराहिल जूटे,
लगलन तमाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

8


अगुआ के भीड़ जुटे,
मनवा में लड्डू फूटे।
एगो के पांच बेरी,
कर‌अ हली सलाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

9


जहिया बियाह भेल,
खूब बाह-बाह भेल।
गते-गते आफत में,
परल परान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


10

नकीया नथा गेल,
ढोलक बनहा गेल।
नेटिया में बजे लगल,
रोज ढम-ढाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


11

घरवा तो बस गेल,
भार-बोझा बढ़ ‌‌‌‌ गेल।
बाल-बाचा घर के अब,
रह‌ई थे ध्यान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

12

जिनगी चलावे ला,
प‌ईसा कमाए ला।
घरवा में होवे लगल,
रोज कोहराम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


13

जब तक जवान हली,
आन्ही-तूफान हली।
झिस-लपट कुछ दिन,
चला देलक काम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

14


संतोषी हम भेली ना,
लेली से देली ना,
कने से लूट लेउं,
इहे हलक धेयान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

15

झिस-लपट बेस लगल,
एक दिना ठेंस लगल।
नानी मरो अब से,
कि करब अईसन काम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


16

पसेना बह‌ईली जब,
देह-तोड़ कम‌ईली जब।
उड़ गेल रूहत देखूं ,
सुख गेल चाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


17

घरवा परिवार ला,
सुखी संसार ला।
दमड़ी ला चमड़ी,
हम क‌ईली निलाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


18

समाज के बात हे,
काहां औकात हे।
प्रतीष्ठा में ज़िन्दगी भर, 
देली परान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

19


क‌ईसहूं निबह गेल,
हाथ खाली रह गेल।
देहिया पर चमड़ी,
ना हथवा में दाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


20

केतनो कमा लेब,
एहिजे गंवा देब।
ई दुनिया-दारी,
सार हेया हराम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

21


जवानी में छुट के,
घीऊ पीली सूत के।
बाड़ा बुढ‌ऊती इ,
कर‌ई थे परेशान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

22

जीते हम तरह जाऊं,
लग‌ई थे कि मर जाऊं।
अटकल हे नेटिये प,
आके परान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


23

जिनगी के धत् तेरी के,
हेरा-फेरी मार तोरी के।
राम भाई हांड़ी,
चूल्हा भाई सलाम।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

24

चैन से जी लेउं,
राम- रस पी लेउं।
मुंअब तो धन ना,
जाएत शमशान।
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।

25

कह देली खोल के,
जाई थी बोल के।
राम नाम सत्य हे,
जपूं सुबह-शाम। 
बाबू हमर नाम हे,
बम फटाका सीताराम।


                                  शर्मा धर्मेंद्र


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